शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

श्री प्रभु राम

क्षत्रिय समाज का जब नाम लिया जाता हैं उसमे एक नाम जो जगत ब्यापक रुप में आता हैं वह हैं श्री प्रभु जगत ब्याप्त
प्रभु श्री राम
श्री प्रभु राम का जन्म रामावतार चैत्र शुक्लनवमी को मध्याह्न में नक्षत्र मे कर्क लग्न में एवं पाच ग्रहों की उच्चता में हुआ था इसलिए यह उत्सव-व्रत जिस दिन मध्याह्न में नवमी रहती हैं उसी दिन मनाने का विधान हैं
क्षत्रिय समाज का जब नाम लिया जाता हैं उसमे एक नाम जो जगत ब्यापक रुप में आता हैं वह हैं श्री प्रभु जगत ब्याप्त प्रभु श्री राम
ॐ सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सवाहनाय सशक्तिकाय श्रीरामाय नम:
वाल्मीकि ने जिन सर्वोत्तम मानवीय मूल्यो पर अपने काव्य की नीवं रखी जिस महापुरुष को नायक बनाया वह कहीं से भी गलत नहीं है तथा इस काल मे इतनी विशेषताओ का भरा पूरा कोई व्यक्ति नहीं हुआ और न आजतक हुआ हैं जिन गुणों की कसौटी पर उन्हें जाचा गया उन पर रघुनंदन राम पूरे दिखते हैं उनका कोई कदम स्वार्थी बन कर नहीं उठा परार्थ परमार्थ उन्होंने मुसीबतों को झेलना भी स्वीकार किया इन्हीँ गुणों ने श्री राम अमर बनाया निर्बल के बल श्री राम- महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर सब कुछ गवा चुके राज्य पाठ धन दौलत घर परिवार कुछ भी नहीं बचा था पाच भाइयों और द्रोपदी के साथ उजड़े मलिकांव में वन में गुजारना ही नियति बन थी जब द्रौपदी का अपहरण करने वाला जयद्रथं का कचूमर निकालकर भीमसेन ने उसे दास बना कर धर्मराज के समक्ष उपस्थित किया तो उन्होंने साफ माफ कर दिया सबके चलें जाने पर अन्दर से खुद को संसार में सबसे बड़ा आभागा मानने लगे यही व्यथा उन्होंने महार्षि मार्कण्डेय के समक्ष रखी इस पर महर्षी ने  उन्हें श्री राम कथा सुना कर ढाढस बंधाया मनुष्य जब विपत्तियों से घिरता हैं तो सहारा ढूढता हैंअपनों की ओर ताकता हैं परायों को भी दयादृष्टि चाहता हैं जीवन जीने के लिए आस पर आस बोता रहता हैं जब कोई आंसू पोछने वाला नहीँ होता कोई हिम्मत बढ़ाने वाला नही होता तभी वह टूटता हैं महार्षि मार्कण्डेय ने श्री राम कथा के माध्यम से श्री राम के जीवन में आयें संकटो से युधिष्ठिर को अवगत कराया और शोक न करने पर बल दिया उन्होंने कहा कि अमित तेजस्वी श्री राम ने भी वनवास का दुख झेला था आपके साथ तो अपने प्रिय परम पराक्रमी सभी भाई भी हैं उनके साथ स्वजनों के न होने पर भी वानर भालू लंगूर जैसी भिन्न योनी के प्राणियों या कहें कि सांस्कृतिक और भाषाई असमानताएं रखने वालों के साथ मैत्री स्थापित कर पराक्रमी रावण का वध कर सीता को मुक्त कराया था श्री राम के सामने आपका कष्ट तो अणुमात्र भी नहीं हैं न हि ते वृजिनं किंचित् वर्तते परमाण्वपि जिसके इन्द्र के समान गाण्डीवधारी अर्जुन भयंकर पराक्रमी गदाधारी भीम और नकुल सहदेव जैसे भाई हो वह देवराज की भी सेना को रास्त कर सकता हैं विषाद क्यों करते हैं वापत्ति में धैर्य ही महात्माओं महापुरुषों का संबल होता हैं वस्तुत: श्री राम का चरित्र युधिष्ठिर से लेकर आज के भी मानवो के लिए समान रुप से प्रेरणाप्रद हैं निर्बल के बल राम कहावत का भी यहीं ध्येय हैं कि जब विपत्ति के आघातों से मन व्यथित हो उठाना हैं जीवन दूर भागने लगता हैं तो रामकथा में ढूँढने पर औषधि मिल जाती हैं आज की ही बात नहीं सादियो से ऐसा होता आया और इसी कारण न राम मन्द पडे और न उनकीं कथा मन्द पड़ी इसलिए समय समय पर सामयिकता का समावेश कर रामकहानी प्रेरणा देतीं रहीं पितृभक्ति भ्रातृ प्रेम अविभाजित दाम्पत्य राग निश्छल मैत्री सेवाधर्म राजधर्म अधिकार कर्तव्य त्याग समपर्ण धैर्य पराक्रम स्वच्छ प्रेम दया करुणा के अतिरिक्त राष्टहित व समाजहित कठोर निर्णय की क्षमता क्या नहीं है राम में रामकथा में जीवन जहां उलझे वहां रामायण का कोई न कोई प्रसंग प्रस्तुत हो जाता गुत्थियां सुलझाने के लिए इतिहास वर्तमान को संवारने के लिए और भविष्य को सफल बनाने के लिए ही होता हैं इसीलिये हम पढते भी हैं कि आदर्श पुरुषों के आचरण से सीख लेकर विपरीत परिस्थितियों का पुरजोर सामना कर सके रामकथा का नायक विषम परिस्थितियां देख उनसे भागने वाला नहीं और न संन्यास लेकर युध्द भीरुता का उदाहरण बनने को तैयार ही दिखता हैं पलायनवाद तथा यथास्थितिवाद को भी गले लगाने वाला नहीं वह तो समुद्र की तरह गंभीर होकर पूरे दमखम के साथ उनका मुकाबला करनेवाले है वह भी ऐसा वैसा नहीं पारा चढने पर देवता भी थर्रा उठते थे कस्य बिभ्यति देवाश्र जातरोषस्य संयुगे वस्तुतः मह्र्षि वाल्मिकी ने अपने काव्य नायक की जो कोटि निश्र्चित की थी उसके लिए छान मारा था शुध्द सात्विक पराक्रमी धर्मज्ञ कृतज्ञ सत्यवादी दृढव्रत चरित्रवान समस्त प्राणियों का हितैषी विद्वान सामथ्र्यवान सामथ्यर्वान सर्वाधिक सुन्दर मन को वश में रखने वाला क्रोध को जीतने वाला ईष्र्या से रहित नीतिज्ञ तथा श्रेष्ठ वक्ता इन16 गुणों में से एक गुण किसी भी व्यक्ति में हो तो अवश्य ही वह अपने क्षेत्र में महान बन सकता हैं वालमिकी ने देवष्रि नारद से पूछा भी था कि क्या हैं वाल्मीकि ने देवष्रि नारद से पूछा भी था कि क्या आपकी नजर में कोई एक ऐसा हैं जिसमें ये16  गुण हो तब नारदजी ने श्री राम के नाम पर मुहर लगा दी और रामचरितमानस को काव्य बध्द किया इन्हीं गुणों ने श्री राम को अमर बनाया वाल्मीकि ने जिन सर्वोत्तम मानवीय मूल्यों पर अपने काव्य की नीव रखी जिस महापुरुष को नायक बनाया वह कहीं से आतिशयोक्ति पूर्ण नहीं किसी काल मे इतनी विशेषताओं से भरा पूरा कोई व्यक्ति मिल ही नहीं सकता जिन गुणों की कसौटी पर उन्हें जाचा गया उन पर रघुनंदन श्री राम पूरे दिखतें हैं!